Monday 18 April 2016

Ayurvedic

भारत में औषधीय पौधों की जानकारी वैदिक  काल  से ही चली आ रही है अथर्ववेद  मुख्य  रूप से आयुर्वेद का सबसे प्राचीन उदगम  स्रोत  है भारत में ऋषि -मुनि  अधिकतर जंगलों में  स्थापित आश्रमो व गुरुकुलों में ही निवास करते थे और वहाँ रहकर जड़ी-बूटियों का प्रक्टिकल व उपयोग हमेशा करते रहते थे इसका प्रभाव भी चमत्कारी होता था क्योंकि इनकी शुद्धता, ताजगी एवं सही पहचान से ही इसे ग्रहण किया जा सकता है l
स्वस्थ रहना हमारा स्वभाव है  और स्वाभाविक स्थिति में स्थित रहने को ही स्वस्थ अवस्था  या स्वस्थ होना कहा जाता है इसलिए जब हम अनुचित एवं अनियमित आहार - विहार करने की वजह से अस्वाभाविक स्थिति  को उपलब्ध हो जाते हैं तो हम अस्वस्थ हो जाते हैं, व्याधिग्रस्त  हो जाते हैं l इससे हमें बेचैनी होती है, पीड़ा होती है l
कोई दुःखी  होना नहीं चाहता, फिर भी होता है l  कोई रोगी होना नहीं चाहता, फिर भी होता है यदि मनुष्य आचार-विहार ठीक रखे तो दुःखी न हो और आहार-विहार ठीक रखे तो रोगी न हो पर कई कारणों से मनुष्य न तो उचित आचार-विचार रख पाता है और न ही आहार-विहार ही ठीक रख पाता  है लिहाजा दुःखी भी होता  है और रोगी भी l  दुःख से दुःखी बना रहना या रोग से रोगी बना रहना उचित नहीं बल्कि इनसे मुक्त होना का प्रयत्न  करना उचित होता है,जरूरी होता है l
शरीर स्वस्थ हो तो मन प्रसन्न रहता है यदि मन प्रसन्न हो तो तन स्वस्थ रहता है तन, मन प्रसन्न व स्वस्थ हों तो ही जीवन सुखी  व समृद्ध होता है इसके लिए उचित आहार-विहार और श्रेठ आचार-विचार का होना जरूरी है ,जब परिवार के सदस्य स्वस्थ और प्रसन्न रहते हैं तब परिवार का उचित विकास होता है  जब परिवार स्वस्थ,सुखी और समृद्ध रहते हैं तब राष्ट्र का उचित विकास होता है हम स्वस्थ और सुखी होंगे तो हमारा राष्ट्र भी स्वस्थ, सुखी और समृद्धिशाली  होगा
औषधि  (नुस्खा) बनाने के लिए उपयोगी नियम 
घरेलू नुस्खे को बनाना हर किसी के लिए सरल काम नहीं है l शुद्ध और असली द्रव्य प्राप्त  करना, उचित विधि और मात्रा का ध्यान रख कर सब द्रव्यों को निर्देश के अनुसार ठीक से तैयार करना ज़रूरी होता है l ऐसा सब उचित विधि - विधान के अनुसार किया जा सके इसके लिए हमें औषधियों की गुणवत्ता का ध्यान रखना होगा, नुस्खा बनाने में सावधानी रखनी होगी और औषधि (नुस्खा)बनाने के बाद उसका सेवन करने में कुछ नियमों का पालन भी करना होगा l  घरेलू नुस्खों को ठीक से बनाया जा सके, अच्छे और दोषरहित द्रव्यों का उपयोग किया जाए और पथ्य - अपथ्य का पालन करते हुए नुस्खे का सेवन किया जा सके इस हेतु ओैषधि की गुणवत्ता,औषधि बनाने में सावधानी  और नुस्खे के लिए उपयोग नियमों के विषय में थोड़ी सी जानकारी दे रहे हैं जिससे आप इन नियमो का पालन करते हुए किसी भी नुस्खे का सेवन करेंगे तो अवश्य ही आपको फायदा होगा l

स्वस्थ रहने का गुरु मन्त्र यह है कि पेट और दिमाग़ को साफ़ रखा जाये यानि पेट में मलावरोध(कब्ज़) न हो 
 और दिमाक में बुरे विचार न रहें l  इसके  लिए कम खाना और कम खाना ज़रूरी है यानि भूख से थोड़ी कम मात्रा में खाने से, पाचन क्रिया ठीक से होगी, तो कब्ज़ न होगी और ग़म खाना यानि सब्र करने से मन में क्रोध,चिन्ता,प्रतिशोध या हिंसा की भावना पैदा न होगी तो चित्त प्रसन्न और निर्मल रहेगा l मन प्रसन्न और स्वस्थ रहेगा तो शरीर  भी निरोग और स्वस्थ रह सकेगा l शरीर स्वस्थ रहेगा तो दिनचर्या के सारे काम ठीक से किये जा सकेंगे इसलिए शरीर और स्वास्थ्य की  रक्षा और पोषण करना सबसे ज्यादा जरुरी है l  
औषधि बनाने मैं सावधानी     
  1. काढ़ा बनाने के लिए मिट्टी का बर्तन लें l मिट्टी का न मिले तो कलई किया हुआ पीतल या स्टेनलेस स्टील का बर्तन लें l एल्युमीनियम का बर्तन कदापि उपयोग में न लें l एल्युमीनियम का बर्तन खाने पीने के पदार्थ रखने के लिए भी उपयोग में न लें l इसमें रखा पदार्थ दूषित हो जाता है l 
  2. नमक और क्षार युक्त औषधियां वर्षा की हवा और टीन के पात्र के सम्पर्क में आने से दूषित हो जाती है अतः बचाना चाहिए l 
  3. गिलोय, अडूसा, शतावरी, असगन्ध, पियाबांसा,सौफ,काशी फल -इन ओषधियों को ताज़ा या सूखा एक ही वज़न में लिया जाता है l इनके अलावा अन्य कष्टौषधियां सूखी के बदले ताज़ी ली जायं तो दुगनी मात्रा में ली जाती हैं l 
  4.  बड़े पेड़ की जड़ लेने का लिखा हो तो पेड़ की जड़ की अंतरछाल लेना चाहिए और पौधे लता आदि की जड़ लेना हो तो पूरी जड़ ही लेना चाहिए l   
यह जानना बहुत ज़रूरी है,कि आपके पेट में भोजन पच रहा है या सड़ रहा है 
हमने रोटी खाई,हमने दाल खाई, हमने सब्जी खाई, हमने दही खाया लस्सी पी, दूध दही छाझ फल आदि ये सब कुछ भोजन के रूप में हमने ग्रहण किया ये सब हमको ऊर्जा देता है और पेट उस ऊर्जा को आगे ट्रांसफर करता है ।  
पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हिन्दी में कहते हैं अमाशय उसी स्थान का संस्कृत में नाम है 
"जठर" l उसी स्थान को अंग्रेजी में कहते हैं {Epigastrium}
ये एक थैली की तरह होता है और यह जठर हमारे शरीर में सबसे महत्वपूर्ण है क्योकि सारा खाना सब से पहले इसी में आता है । ये बहुत छोटा सा स्थान हैं इसमें अधिक से अधिक 350 GMS खाना आ सकता है । हम कुछ भी खाते सब ये आमाशय में आ जाता है ।  आमाशय में अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हैं जठरान्ग । 
ये जठराग्नि है वो आमाशय में प्रदीप्त होने वाली आग है । ऐसे ही पेट में होता है जैसे ही आपने खाना खाया कि जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी। यह ऑटोमेटिक है, जैसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह में डाला कि इधर 
 जठराग्नि प्रदीप्त हो गई । ये अग्नि तब तक जलती है जब तक खाना पचता है अब आपने कहते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते हैं अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी । आग अगर बुझ गई तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी । अब हमेशा याद रखें खाना खाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती हैं, एक क्रिया है जिसको हम कहते हैं "Digestion" और दूसरी है  "Fermentation" फर्मेंटेशन का मतलब है सड़ना और डायजेशन का मतलब है पचना । आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा, खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा । जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डियां, मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत में मेद बनेगा । ये तभी होगा जब खाना पचेगा । यह सब हमें चाहिए ये तो हुई खाना पचने की बात । 
अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा ? खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो यूरिक एसिड (uric acid) कई बार आप डाक्टर के पास जाकर कहते हैं कि मुझे घुटने में दर्द हो रहा है, मुझे कन्धे, कमर में दर्द हो रहा है तो डाक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो और एक दूसरा उदाहरण खाना जब सड़ता है, यूरिक एसिड जैसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हैं LDL (Low Density Liporotive) याने खराब कोलेस्ट्रोल जब आप ब्लड प्रेशर (BP) चेक करने डाक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है  हाई बीपी (High BP) है तो आप पूछोगे कारण बताओ ? तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौन सा बहुत है ? तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है । इससे भी ज्यादा खतरनाक एक विष है वो है VLDL (Very Low Density Liporotive)  ये भी कोलेस्ट्रोल जैसा ही विष है । 
अगर VLDL बहुत बढ़ गया है तो आपको भगवान भी नही बचा सकता । खाना सड़ने पर और जो जहर बनते हैं उसमे एक और विष है जिसको अंग्रेजी में हम कहते हैं Triglycerides जब भी डाक्टर आपको कहे कि आपका Triglycerides बढ़ा हुआ है तो समझ लीजिए की आपके शरीर में विष निर्माण हो रहा है तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे, कोई कोलेस्ट्रोल  नाम से कहे, कोई .LDL-VLDL के नाम से कहे समझ लीजिये की ये विष हैं और ऐसे विष 103 हैं । ये सभी विष तब बनते हैं जब खाना सड़ता है । मतलब समझ लीजिये किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट में ध्यान आना चाहिए कि खाना पच नहीं रहा है , कोई कहता है मेरा 
Triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट में समझ लीजिये कि आपका खाना पच नहीं रहा है । कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने में की खाना पच नहीं रहा है । क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई जहर नहीं बनता । खाना  पचने से जो बनता है वो है मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डियां, मल,मूत्र और अस्थि और खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड,कोलेस्ट्रोल,LDL-VLDL और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते हैं ! पेट में बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़ कर खून में आते हैं तो खून दिल की नाड़ियों में से निकल नहीं पता और रोज थोड़ा-थोड़ा कचरा जो खून में आया है जमां होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है । *जिसे आप Heart attack कहते हैं !
तो हमें जिंदगी में ध्यान इस बात पर देना है कि जो हम खा रहे हैं वो शरीर में ठीक से पचना चाहिए और खाना ठीक से पचना चहिये इसके लिए पेट में ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए। क्योकि बिना आग के खाना पचता नहीं है और खाना पकता भी नहीं है। 
महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचना है। 
आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं है। खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !
[भोजनान्ते विषं वारी ]
मतलब खाना खाने के तुरन्त बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है 
इसलिए खाना खाने के तुरंत बाद पानी कभी भी नहीं पीना चाहिए !
अब आपके मन में सवाल आएगा कि कितनी देर तक पानी नहीं पीना चाहिए ? 
तो 1 घण्टे 48 मिनट तक पानी नहीं पीना ! अब आप कहेंगे इसका क्या केलक्युलेशन है ? 
बात ऐसी है !
जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे में मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट में बदलता है पेस्ट में बदलने की क्रिया होने तक 1 घण्टा 48 मिनट का समय लगता है ! उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है !(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है) पेस्ट बनने के बाद शरीर में रस बनने की प्रक्रिया शुरू होती है ! तब हमारे शरीर को पानी की ज़रूरत होती है। तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पियें !
जो बहुत मेहनती लोग होते हैं (खेत में हल चलने वाले,रिक्शा खींचने वाले, पत्थर तोड़ने ) उनको 1 घण्टे के बाद ही रस बनने लगता है उनको एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए !
अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ?
तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !
अब आप पूछेंगे ये मिनट का Calculation ?
बात ऐसी ही है जब हम पानी पीते हैं तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है  और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिण्ड तक पहुँचता है ! पानी पीने से मूत्र पिण्ड तक आने का समय 45 मिनट का है ! तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पानी पियें ! पानी न पीये खाना खाने के बाद । इसका ज़रुर पालन करें !
विटामिन क्यों जरूरी है 
हमारे शरीर के लिए कई विटामिन जरूरी है, लेकिन हमें आमतौर पर पता नहीं चलता अगर किसी विटामिन की कमी से हमें कोई बीमारी हो गई हो तो । जानते हैं विटामिन क्यों जरूरी है और इनकी कमियों की वजह से कौन सी बीमारियां हो सकती हैं 
विटामिन (A)
कमी  के कारण ये बीमारियां :
विटामिन A वसा में घुलनशील विटामिन है । यह मनुष्य के शरीर में सबसे ज्यादा लीवर में संग्रहित होता है । जो हड्डियों, त्वचा, आँखों और शरीर के अन्य टिश्यू के लिए महत्वपूर्ण है । इसकी कमी से रतोंधी रोग होता है दिल, गुर्दे और फेफड़ों को दुरुस्त रखने के लिए यह बहुत जरूरी है । 
ऐसे बढ़ायें विटामिन :
विटामिन A अण्डे,मछली के तेल, पनीर, दूध, गहरे रंग की सब्जियों जैसे गाजर,पीले रंग सब्जियों के अलावा अखरोट, खरबूज, शकरकंद में भी विटामिन A पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। 
विटामिन (B) 
विटामिन बी कई प्रकार के होते हैं, इनकी कमी से होने वाली परेशानियां और बचाव : 
B1 इसे थाइमिन भी कहते हैं। इसकी कमी से बेरी-बेरी रोग और पाचन तंत्र का सही ढंग से काम न करना, ह्रदय संबंधी रोग हो सकते हैं। 
ये खायें :- चावल,नट्स, मटर, जौ, सूरज मुखी के बीज, सरसों के बीज, काली मिर्च आदि में मौजूद होता है। 
B2 इसे राइबोफ्लेविन भी कहते हैं। यह लाल रक्त कणिकाओं को बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। 
इसकी कमी से आँखों का सूखना, डिप्रेशन, याददाश्त कमजोर होना जैसी बीमारियां हो जाती हैं । 
ये खायें :- सोयाबीन, दही, मशरूम, फूलगोभी  आदि में पाया जाता है । 
B3 यह विटामिन शरीर से टॉक्सिन कम करने में मदद करता है तथा मेटाबॉलिज्म संतुलित रखने में सहायक है। 
ये खायें :- मूँगफली, ब्राउन राइस, मक्का, पत्तागोभी, अजवायन, मछली इसके प्रमुख स्रोत हैं। 
B4 इसकी कमी से त्वचा और रक्त संबंधी रोग, इम्यून सिस्टम का सही ढंग से काम न करना, शरीर का सही विकास न होना जैसी बीमारियां होती हैं । 
ये खायें :- साबुत अनाज, लोंग, तेजपत्ता, दूब,अदरक और शहद से मिलता है । 
B12 इसकी कमी से थकान,डिप्रेशन, उँगलियों और अंगूठे में असंवेदनशीलता, साँस लेने में तकलीफ जैसी समस्यायें होती हैं। 
ये खायें :- नारियल, दूध, बादाम दूध, दही और चिकन  आदि में होता है । 
विटामिन (C) 
यह पानी में घुलनशील है। शरीर में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट की रक्षा करता है। यह विटामिन शरीर की रासायनिक क्रियाओं में सहायक होता है तथा कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। इसकी कमी से स्कर्वी, हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक, कैंसर, पित्ताशय संबंधी रोग, मेटाबॉलिज्म कमजोर होना जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
ये खायें :- विटामिन C खट्टे फलों में पाया जाता है। रस भरी, लाल और हरि मिर्च, शलजम, अमरुद, पपीता, अन्नानास, लहसुन, खीरा, बेर, तुलसी के पत्ते, अजवायन के फूल, चुकन्दर, हरे प्याज में विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। एक वयस्क वयक्ति को विटामिन सी की प्रतिदिन 110 एमजी की खुराक की आवश्यकता होती है।
विटामिन (D)
वसा में घुलनशील यह विटामिन हमें भोजन से तथा सूर्य की किरणों से प्राप्त होता है। इसमें विटामिन D2 अर्गोकेलसिफरोल तथा D3 को कोलेकेलसिफरोल कहते हैं। यह रक्त में कैल्शियम और और फॉस्फोरस के स्तर को संतुलित रखता है। विटामिन D की कमी से रिकेट्स, दमा, मधुमेह, ब्रॉन्काइटिस आदि हो सकते हैं। इसकी कमी से आँस्टोपोरोसिस का खतरा भी रहता है ।
ये खायें :-  विटामिन D दूध,सालमन मछली, मशरूम,अण्डे, घोघा में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। कड मछली के लीवर से बना कड लीवर आयल विटामिन डी का अच्छा स्रोत है। इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड भी पर्याप्त मात्रा में होता है साथ ही सोया मिल्क, पनीर,टोफू, मक्खन, ऑरेन्ज जूस से भी मिलता है। भारतीयों को प्रतिदिन 2000 आईयू विटामिन (विटामिन मापने की इकाई) की जरूरत होती है।
विटामिन (E)
यह वसा में घुलनशील विटामिन है। यह विटामिन स्वस्थ त्वचा, आँखों और इम्युनिटी सिस्टम मजबूत रखने के लिए आवश्यक है यह शरीर के सेल्स को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। विटामिन E की कमी से डायबिटीज, ह्रदय संबंधी रोग,पीलिया, पित्ताशय संबंधी रोग होने की आशंका रहती है।
ये खायें :- जैतून के फल और तेल, करौंदे, झींगा मछली,ग्रीन कोलार्ड, हरी शिमला मिर्च, नागदौन का सेवन करना फायदेमंद है। पालक, चुकन्दर के हरे पत्ते, शलजम में भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। सूरज मुखी, कदू, शीशम, सरसों के कच्चे बीजों को खाने से भी विटामिन E मिलता है। एक चौथाई कप सूरज मुखी के बीज विटामिन ई की 90.5 प्रतिशत नियमित खुराक पूरी कर देता है । 
विटामिन (K)
इस विटामिन को क्लॉटिंग विटामिन भी कहते हैं, इसके दो मुख्य प्रकार हैं K1 और K21 शरीर में विटामिन K की कमी होने से कोई भी चोट लगने पर लगातार खून भने की समस्या हो जाती है। इस विटामिन की कमी से इंटरनल हैमरेज होने की आशंका बढ़ जाती है। कोई पुरानी बीमारी की वजह से भी शरीर में विटामिन K की कमी हो सकती है। पुरूषों की तुलना में महिलायों को विटामिन K की आवश्यकता होती है। 
ये खायें :- विटामिन K जैतून के तेल में, चुकन्दर के हरे पत्तों, शलजम, हरे प्याज, अजवाइन, ब्लूबेरी, लौंग, करौंदे में पाया जाता है। हरी पत्तेदार सब्जियों, ग्रीन कोलार्ड, पत्तागोभी,फूलगोभी, मीट, पनीर,मछली, अजवायन,लौंग, नाशपाती में भी पर्याप्त  मात्रा में विटामिन K पाया जाता है। 100 ग्राम दूध या अण्डे से 2 से 50 माइक्रोग्राम विटामिन मिलता है। व्यक्ति को रोजाना 75 माइक्रोग्राम विटामिन K की आवश्यकता होती है।